देह मुक्त आकर्षण - मन से युक्त आकर्षण

*देह मुक्त आकर्षण - मन से युक्त आकर्षण*
नेहा होटल की बालकनी में बैठकर चाय का पहला घूंट भर ही रही थी कि उसकी नजर अचानक बगल वाले कमरे की बालकनी में खड़े व्यक्ति पर ठहर गई। उसकी कद-काठी, छरहरा बदन और हावभाव उसे अनुराग की याद दिला रहे थे। वह कुछ पलों तक असमंजस में रही, फिर खुद को समझाने लगी कि यह महज एक संयोग हो सकता है। लेकिन तभी वह व्यक्ति पलटा और दोनों की नजरें टकरा गईं।

"अरे अनुराग, तुम यहां कैसे?" नेहा के मुंह से अचानक शब्द निकल पड़े। अनुराग भी हैरान था, उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि 30 साल बाद नेहा अचानक उसके सामने होगी। दोनों कुछ देर तक अपलक एक-दूसरे को देखते रहे, जैसे वक्त कुछ पलों के लिए ठहर गया हो। नैनीताल की ठंडी हवाएं और शांत झील के किनारे यह संयोग किसी पुराने अधूरे सपने की तरह लग रहा था।

"नेहा, इतने सालों बाद भी तुम वैसी ही सुंदर लग रही हो," अनुराग ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
"अनुराग, मेरे पति आकाश भी यही कहते हैं।" नेहा हंसते हुए बोली, "तुम भी वैसे ही स्मार्ट और डायनैमिक लग रहे हो। लगता है कोई बड़े अफसर बन गए हो।"
"ठीक पहचाना," अनुराग ने बताया, "मैं लखनऊ में डी.आई.जी. के पद पर हूं। हल्द्वानी किसी काम से आया था, सोचा नैनीताल घूम लूं। लेकिन तुम यहां कैसे?"
"मैं बरेली के एक कॉलेज में प्रोफेसर हूं। यहां परीक्षा लेने आई थी। वैसे अकेले ही आई थी, लेकिन अब जब तुम मिल गए हो तो शायद रुकने का प्लान बदलना पड़ेगा।"

अनुराग हल्का सा मुस्कुराया और बोला, "नेहा, जिंदगी के प्लान तो वक्त के साथ वैसे भी बदल जाते हैं..."
कुछ पलों की खामोशी के बाद नेहा ने कहा, "अनुराग, तुमने कभी सोचा कि पापा ने अचानक मेरी पढ़ाई छुड़वाकर मुझे बरेली क्यों भेज दिया था?"
"नेहा, यही सवाल मुझे सालों से परेशान कर रहा था।" अनुराग का चेहरा गंभीर हो गया।
"पापा नहीं चाहते थे कि पढ़ाई के दौरान मैं प्रेम में पड़ूं," नेहा ने सच बताया, "उन्होंने मुझे एम.एससी. और पीएचडी करवाई और फिर मेरी शादी कर दी।"

"अब तुम्हारे कितने बच्चे हैं?" अनुराग ने पूछा।
"दो बेटे हैं। बड़ा बेटा इंग्लैंड में डॉक्टर है और दूसरा अमेरिका में इंजीनियर।"
"मेरे भी दो बेटे हैं। एक आईएएस अधिकारी है और दूसरा एम्स में डॉक्टर। अब घर में सिर्फ मैं और अंशिका रहते हैं।"

अनुराग कुछ देर नेहा को अपलक देखता रहा।
"ऐसे क्या देख रहे हो अनुराग?" नेहा मुस्कुराई।
"नेहा, हमारा प्रेम कभी खत्म नहीं हुआ। बस, यह देह के आकर्षण से मुक्त हो गया।"
"सच, अनुराग। प्रेम लोभ और मोह से परे होता है।"

बातों का सिलसिला फिर से चल पड़ा। अनुराग ने होटल में चाय मंगवाई, तो नेहा ने अपने साथ लाई मठरियां निकालीं। बीते पलों की यादें ताजा होने लगीं।

"अब फ्लैट पर चलें?" अनुराग ने सहजता से पूछा।
नेहा ने थोड़ी झिझक के बाद हामी भर दी। चलते-चलते दोनों अपने कॉलेज के दिनों की यादों में खो गए।

"नेहा, याद है? तुम झील में गिर गई थीं और..."
नेहा मुस्कुराई, "हां, और तुमने मुझे बचाने के लिए ठंडे पानी में छलांग लगा दी थी।"
"लेकिन मैं ही डूबने लगा था, और लाइफगार्ड ने हमें बचाया था!" अनुराग ठहाका लगाकर हंसा।

दोनों एक-दूसरे के साथ बिताए पलों को याद कर रहे थे। वक्त ने बहुत कुछ बदल दिया था, लेकिन उनके बीच की भावनाएं अब भी वैसी ही थीं—निस्वार्थ, शुद्ध और गहरी।

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देह के आकर्षण से मुक्त तथा मन के आकर्षण से युक्त प्रेम ही सच्चा प्रेम कहलाता है।

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